Investigation of women's plight in Madhu Kankariya's novel 'Sej Per Sanskrit'
मधु कांकरिया के उपन्यास ‘सेज पर संस्कृत’ में नारी व्यथा की पड़ताल
DOI:
https://doi.org/10.31305/rrijm.2024.v09.n01.008Keywords:
Identity, patriarchal society, liberalisation, cultural awareness, control, economic destinyAbstract
Women have such a close relationship with literature, art and philosophy that it is not possible to imagine civilization in its absence. In the Puranas and Sanskrit epics, women have been portrayed in a very dignified manner. In ancient Indian texts, woman has got a very proud place and she has been given the status of a goddess. Later, with the change in circumstances, the society's attitude towards women also changed. While in the Vedic era, women had a very honorable place, after that the dignity of women continued to be devalued. The woman who was a goddess now became a human being. Gradually the male-dominated society started forgetting its ancient ideals. Now woman has become a mere victim for man. The man continued to enjoy his freedom and the woman remained confined to the confines of taboos.
Abstract in Hindi Language: साहित्य, कला और दर्शन से स्त्री का इतना घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है कि उसके अभाव में सभ्यता की कल्पना संभव नहीं है। पुराणों और संस्कृत महाकाव्यों में स्त्री अत्यन्त गरिमामयी रुप में चित्रित हुई है। प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में स्त्री को अत्यन्त गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है तथा उसे देवी के समान स्थान दिया गया है। आगे चलकर परिस्थितियों में परिवर्तन के साथ स्त्री के प्रति समाज के दृष्टिकोण में भी परिवर्तन आता गया। जहाँ वैदिक युग में स्त्री को अत्यन्त गौरवपूर्ण स्थान मिला था, वहीं उसके बाद स्त्री के गौरव का निरन्तर अवमूल्यन होता रहा। जो स्त्री देवी थी अब वह मानवी बनकर रह गई। धीरे-धीरे पुरुष-प्रधान समाज अपने प्राचीन आदर्शों को भूलने लगा। अब पुरुष के लिए स्त्री मात्र भोग्या रह गई। पुरुष अपनी स्वच्छन्दता का उपभोग करता रहा तथा स्त्री वर्जनाओं की परिधि में क़ैद रही।
Keywords: अस्मिता, पितृसत्तात्मक समाज, उदारीकरण, सांस्कृतिकि बोध, नियन्ता, आर्थिक नियति।
References
डॉ. शोभा पालीवाल, अमृतलाल नागर के उपन्यासों में सामाजिक चेतना, साहित्यागार, जयपुर, 1995, पृ. 114
मधु कांकरिया, सेज पर संस्कृत, राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, पेपर बैक संस्करण, 2010, पृ. 51
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वही, पृ. 226
वही, पृ. 227
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