Analysis of the representation of women's struggles for empowerment in the literature of Maitreyi Pushpa
मैत्रेयी पुष्पा के साहित्य में सशक्तिकरण के लिए महिलाओं के संघर्षों के प्रतिनिधित्व का विश्लेषण
DOI:
https://doi.org/10.31305/rrijm.2024.v09.n04.003Keywords:
Literary theory, women empowerment, feminist literature, social barrier, representation, gender conflict, Indian societyAbstract
Maitreyi Pushpa's literary works deeply depict the experiences, struggles and aspirations of women in the socio-cultural landscape of India. The objective of this research paper is to critically analyze how Maitreyi Pushpa represents the struggle for women's empowerment through her literary works. It highlights the nuanced portrayal of female characters in Maitreyi Pushpa's writings, exploring the multifaceted dimensions of their fight against patriarchy, social norms and institutional oppression. Based on feminist literary theory and post-colonial perspectives, the analysis examines how Maitreyi Pushpa's narratives reflect the realities of Indian women, particularly those from marginalized communities, who face gender inequality, discrimination and subordination. grapples with issues of. The representation of women's organization and resistance in Maitreyi Pushpa's works is central to the examination. Through vivid characterization and compelling storytelling, Maitreyi Pushpa highlights the courage, resilience and determination of her female characters as they overcome societal barriers and confront oppressive structures. These characters emerge as symbols of defiance and empowerment, inspiring readers to question existing power structures and advocate for gender justice.
Abstract in Hindi Language: मैत्रेयी पुष्पा की साहित्यिक कृतियाँ भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य में महिलाओं के अनुभवों, संघर्षों और आकांक्षाओं का गहन चित्रण करती हैं। इस शोध पत्र का उद्देश्य आलोचनात्मक विश्लेषण करना है कि मैत्रेयी पुष्पा अपनी साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से महिलाओं के सशक्तिकरण संघर्ष का प्रतिनिधित्व कैसे करती हैं। यह मैत्रेयी पुष्पा के लेखन में महिला पात्रों के सूक्ष्म चित्रण पर प्रकाश डालता है, पितृसत्ता, सामाजिक मानदंडों और संस्थागत उत्पीड़न के खिलाफ उनकी लड़ाई के बहुमुखी आयामों की खोज करता है। नारीवादी साहित्यिक सिद्धांत और उत्तर-औपनिवेशिक दृष्टिकोण पर आधारित, विश्लेषण इस बात की जांच करता है कि कैसे मैत्रेयी पुष्पा की कथाएं भारतीय महिलाओं की वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करती हैं, विशेष रूप से हाशिए पर रहने वाले समुदायों से, जो लैंगिक असमानता, भेदभाव और अधीनता के मुद्दों से जूझती हैं। मैत्रेयी पुष्पा के कार्यों में महिला संगठन और प्रतिरोध का प्रतिनिधित्व ही परीक्षा का केंद्र है। ज्वलंत चरित्र-चित्रण और सम्मोहक कहानी कहने के माध्यम से, मैत्रेयी पुष्पा अपनी महिला पात्रों के साहस, लचीलेपन और दृढ़ संकल्प को उजागर करती है क्योंकि वे सामाजिक बाधाओं से गुजरती हैं और दमनकारी संरचनाओं का सामना करती हैं। ये पात्र अवज्ञा और सशक्तिकरण के प्रतीक के रूप में उभरते हैं, जो पाठकों को मौजूदा सत्ता संरचनाओं पर सवाल उठाने और लैंगिक न्याय की वकालत करने के लिए प्रेरित करते हैं।
Keywords: साहित्यिक सिद्धांत, महिला सशक्तिकरण, नारीवादी साहित्य, सामाजिक बाधा, प्रतिनिधित्व, लैंगिक संघर्ष, भारतीय समाज।
References
मैत्रेयी पुष्पाः चाक - पृष्ठ 07
मैत्रेयी पुष्पाः स्त्री होने की कथा - पृष्ठ 117 सं- विजय सिंह बहादुर
’मैत्रेयी पुष्पाः समालोचनात्मक अध्ययन’ - लेखकः आशुतोष शर्मा
मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यासों में नारी -डाॅ संतोष पवार - पृष्ठ 10
’मैत्रेयी पुष्पाः एक अध्ययन’ - लेखकः मीनाक्षी गुप्ता
मैत्रेयी पुष्पाः विजन - पृष्ठ 187
’मैत्रेयी पुष्पाः एक साहित्यिक अध्ययन’ - लेखकः रविन्द्र कुमार
मैत्रेयी पुष्पाः अगनपाखी - पृष्ठ 07
मैत्रेयी पुष्पाः गुनाह-बेगुनाह - पृष्ठ 208-209
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