Mauryan period social and religious system: An overview
मौर्यकालीन सामाजिक एवं धार्मिक व्यवस्था: एक अवलोकन
DOI:
https://doi.org/10.31305/rrijm.2024.v09.n07.029Keywords:
India, Mauryan period, Ashoka, social, religiousAbstract
Mauryan period is one of the most important periods of Indian history from social and religious point of view. Among the rulers of this period, the names of Chandragupta Maurya and Ashoka are taken with great respect. Ashoka's religious preaching gave great importance to the moral aspect of man. He was the main preacher of inner purity instead of external pomp. Obeying parents, respecting teachers, behaving generously and appropriately towards relatives, friends and neighbors, developing character qualities like non-violence, charity, forgiveness, tolerance, truth, gentleness etc. are such teachings which have been mentioned in many of his inscriptions. But this should not be taken to mean that the moral level of the society before this was low. Megasthenes' writings praise Indian character and personality a lot. He writes that Indians live very happily because they are simple and frugal in their conduct. The simplicity of their laws and agreements is proved by the fact that they very rarely resort to courts. In the eyes of Indians, merit was more important and respectable than wealth. In this regard, Megasthenes writes about Indians that they respect truth and virtue.
Abstract in Hindi Language: मौर्यकाल सामाजिक एवं धार्मिक दृष्टि से भारतीय इतिहास के सबसे महत्त्वपूर्ण कालों में से एक है। इस काल के शासकों में चन्द्रगुप्त मौर्य एवं अशोक का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। अशोक के धर्म-प्रचार ने मनुष्य के नैतिक पक्ष पर बहुत महत्व दिया था। वह बाह्य आडम्बर के स्थान पर अन्तःशुद्धि का ही प्रमुख प्रचारक था। माता-पिता की आज्ञा मानना, गुरु-जन का आदर करना, सम्बन्धियों, मित्रों और पड़ोसियों के प्रति उदार एवं उचित बर्ताव करना, अहिंसा, दान, क्षमा, सहिष्णुता, सत्य, मार्दव आदि चारित्रिक गुणों का विकास करना आदि ऐसी शिक्षायें हैं जिनका उल्लेख उसके अनेक अभिलेखों में हुआ है। परन्तु इससे यह न समझना चाहिए कि इसके पूर्व समाज का नैतिक स्तर नीचा था। मेगस्थनीज के लेख भारतीय चरित्र एवं व्यक्तित्व की बड़ी प्रशंषा करते हैं वह लिखता है कि अपने आचरण में सरल और मितव्ययी होने के कारण भारतीय काफी सुख से रहते हैं। उनके कानूनों और समझौतों की सरलता इसी बात से प्रमाणित होती है कि वे बहुत कम न्यायालयों की शरण लेतें हैं। भारतीयों की दृष्टि में योग्यता धन की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण एवं आदरणीय थी। इस सम्बन्ध में मेगस्थनीज भारतीयों के विषय में लिखता है कि वे सत्य और गुण का आदर करते हैं।
Keywords: भारत, मौर्यकालीन, अशोक, सामाजिक एवं धार्मिक।
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