The Place of Peace and Non-Violence in the Vedic Tradition
वैदिक परंपरा में शांति एवं अहिंसा का स्थान
DOI:
https://doi.org/10.31305/rrijm.2025.v10.n3.025Keywords:
Non-violence, Goat, Animal, Yama, Niyama, Non-stealing, Non-possessionAbstract
The modern world draws its inspiration for peace and non-violence from an Indian personality – Mahatma Gandhi. And Gandhi, in turn, drew his inspiration from ancient traditions. It is commonly believed that Gandhi adopted the concept of non-violence from Jainism, and this argument appears logically sound. Today, Jainism is largely confined to certain parts of Rajasthan and Gujarat. As Jain followers traveled for trade and commerce, they carried Jainism with them wherever they went. However, Gandhi himself preferred to identify as a Hindu. Therefore, it is more likely that the inspiration for Gandhi's non-violence came from the Vaishnav tradition. This research paper has been prepared with this idea in mind. This short research paper begins with some quotes derived from the Vaishnav tradition. Following Kumarila's notion, “Heenashcha dushyante iti Hindu kathyante,” the paper uses the term "Vedic tradition" in place of "Hindu" and also presents logical reasoning for this choice. The stream of Indian philosophy flows through two branches: the Śramaṇa and the Vedic traditions. These are also known as the heterodox (Nāstika) and orthodox (Āstika) schools of thought. It is a social and historical fact that, due to the caste system and the cycle of violence in the Vedic tradition, the emergence of Buddhism and Jainism became possible. Lord Mahavira and Tathagata Buddha are regarded as beacons of peace, compassion, and non-violence. But the question remains: Does the Vedic tradition also have a place for peace and non-violence? This is the core inquiry of this research paper. In this paper, examples from Buddhism and Jainism have been deliberately avoided. Instead, the study explores the concept of peace and non-violence through references such as the Deva-Asura wars, the Ramayana, and the Mahabharata, analyzing Vedic literature, and ends with a wish for the well-being of all.
Abstract in Hindi Language: आधुनिक विश्व शांति और अहिंसा की प्रेरणा एक भारतीय से ग्रहण करता है, महात्मा गांधी से और गांधी, प्राचीन परंपराओं से। ऐसा माना जाता है कि, गांधी ने अहिंसा जैन मत से ग्रहण किया तर्क युकति संगत भी प्रतीत होता है। आज जैन मत राजस्थान और गुजरात के कुछ हिस्सों तक सीमित है। व्यापार – वाणिज्य के सिलसिले में ये जैन मतावलंबी जहाँ – जहाँ गए जैन मत को अपने साथ लेते गए। पर गांधी तो स्वयम् को एक हिंदू कहलाना पसंद करते थे। अतैव गांधी के अहिंसा की प्रेरणा अवश्य ही वैष्णव परंपरा है। य़ह शोध पत्र इसी विचार को ध्यान में रख कर तैयार किया गया है। यह लधु शोध पत्र कुछ ऐसे उद्धरणों के साथ प्रारंभ होता है, जो वैष्णव परंपरा से लिए हुए हैं। तत् पश्चात कुमारिल के “हीनश्छ दूष्यन्ते इति हीन्दू कथयंते” का अनुसरण करते हुए शोध पत्र हिंदू के स्थान पर वैदिक परंपरा शब्दसमूह का प्रयोग करता है तथा इसके लिए तर्क भी प्रस्तुत करता है। भारतीय दर्शन की धारा श्रमण तथा वैदिक इन दो शाखाओं में प्रवाहित हो रही है। आप इसे नास्तिक और आस्तिक दर्शन शाखाओं के रूप में भी जानते है। यह एक सामाजिक एवम् ऐतिहासिक तथ्य है कि, वैदिक परंपरा में जाति प्रथा एवम् हिंसा के कुचक्र के फलस्वरूप बौद्ध एवम् जैन मत का उद्भव संभव हुआ शांति, करुणा तथा अहिंसा केलिए भगवान महावीर और तथागत् बुद्ध को प्रकाश स्तंभ माना जाता है परंतु क्या वैदिक परंपरा में भी शांति एवम् अहिंसा का स्थान है? यही पड़ताल इस शोध पत्र का लक्ष्य है। इस शोध पत्र में यत्न पूर्वक बौद्ध और जैन मतों के उदाहरणों की वर्जना है। यह शोध पत्र देवासुर संग्राम, रामायण, महाभारत आदि की चर्चा करता हुआ तथा वैदिक साहित्य में शांति एवं अहिंसा की विवेचना करता हुआ सब की मंगल कामना करता हुआ संपन्न होता है।
Keywords: अहिंसा, अज, पशु, यम, निम, अस्तेय, अपरिग्रह।
References
अष्टादश पुराणेशु। व्यासस्य वचन द्वयम्।।
परोपकाराः पुन्याय। पापाय पर पीडनम्।। पारंपरिक संस्कृत सुभाषित से
श्री राम चरित्र मानस 7.40.1
संत तुकाराम के अभंग से
उत्तरम् यत् समुद्रस्य। हिमाद्रश्चैव दक्षिणम्।।
तत् वर्षम् भारतम् नाम। भारती तत्र सन्तती।। विष्णू पुराण 2.1.31
वेदो अखिलो धर्म मूलं मनु स्मृति 2.6
नास्तिको वेदनिन्दकः मनु स्मृति 2.11
सिंधु सागर को भी कहते हैं यहां सिंधु, नदी है जो तिब्बत से निकल कर कराची पाकिस्तान के समीप अरब
सागर में जा मिलती है।
देखेँ भारतीय संविधान की प्रस्तावना
असूसु इंद्रियेशु रमंते इति असुराः
एकं सत् विप्राः बहुदा वदंती ऋग्वेद से
ध्यायतो…अभिजायते, क्रोधात्...प्रणस्यति, नास्ति...सुखम् भग्वद्गीता 2.62, 63, 66
अन्यच्छ्रेयः...वृणीते, श्रेयश्च...वृणीते कठोपनिषद् 1.2.1, 1.2.2
श्रुति प्रथम प्रमाण है। स्मृति उसके बाद। यदी श्रुति तथा स्मृति में भेद हो तो श्रुति को ही प्रमाण मानना
चाहिये।
बलिर्भौतो मनु स्मृति 3.70
बुद्धी तु सारथी कठोपनिषद् 1.3.3
विज्ञानसारथी कठोपनिषद् 1.3.9
विना विचारे जो करे। सो पाछे पछिताए।।
काम बिगारो आपनो। जग में होत हसाय।।
विस्तार से जानने के लिये देखें महाभारत का भीष्म पर्व
असतोमा सत् गमय। तमसोमा ज्योतिर्गमय। मृत्युर्मा अमृतम् गमय।। ॐ शांतिः, शांतिः, शांतिः
अहिंसयैव...सर्वदा स्मृति 2.159-162
अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमाः योग सूत्र 2.30
जातिदेशकालसमयानवच्छिन्नाः सार्वभौमा महाव्रतम् योग सुत्र 2.31
शौचसंतोषतपः स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः योग सुत्र 2.32
यमान्सेवेत...भजन् मनु स्मृति 4.204
अभयं...आर्जवम् , अहिंसा...हृरीचापलम् भग्वद्गीता 16.1- 2
सत्यं ब्रूयात्प्रियं ब्रूयान्न ब्रूयात्सत्यमप्रियम्
प्रियं च नानृतं ब्रूयादेष धर्मः सनातनः मनु स्मृति 4.138
वितर्का हिंसादयः कृतकारितानुमोदिता लोभक्रोधमोहपूर्वका
मृदुमध्याधिमात्रा दःखाज्ञानानन्तफला इति प्रतिपक्षभावनम् योग सूत्र 2.34
अहिंसाप्रतिष्ठायां तत्संनिधौ वैरत्यागः योग सूत्र 2.35
साहित्य, संगीत कला विहिनः।
साक्षात् पशु पुच्छ विषाण हीनः।। नीति शतकम् 12
भूमि मंगलम्, उदत मंगलम्, अग्नि मंगलम्, वायू मंगलम्, गगन मंगलम्, सूर्य मंगलम्, चंद्र मंगलम्,
जगत् मंगलम्, जीव मंगलम्, देह मंगलम्, मनो मंगलम्, आत्म मंगलम्, सर्व मंगलम्
भवतु, भवतु, भवतु !
सर्वे भवंतु सुखिनः। सर्वे संतु निरामयाः।।
सर्वे भद्राणी पष्यंतु। मा कश्चित् दुःख भाग भवेत्।।
ॐ द्यूः शांति, अंतरिक्ष शांति
पृथवी शांति, आपः शांति
ओषधयः शांति, वनस्पतयः शांति
विशवेदेवाः शांति, ब्रह्म शांति,
सरवम् शांति, शांतिरेव शांतिः
शांतिरेभिः ॐ शांतिः शांतिः शांतिः
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम्।
पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।। ईशावास्य उपनिषद 1
पूर्णस्य पूर्णमादाय।
पूर्णमेवावशिष्यते।।
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