Sacrifice of Dalit women in the journey of independent India

स्वतंत्र भारत की निर्माण यात्रा में दलित स्त्रियों का बलिदान

Authors

  • Dr. Sonali Tank Assistant Professor (Political Science), Govt. College, Pushkar, Ajmer, Rajasthan

DOI:

https://doi.org/10.31305/rrijm.2023.v08.n03.038

Keywords:

Attainment of freedom, Dalit women, Dr. Bhimrao Ambedkar, Dalit Movement, Caste Discrimination

Abstract

The Indian social system has been very prosperous in the Vedic period. The Vedic period was the time in which the Vedas were composed. The Vedic period was divided into two parts - Rigvedic period, whose time was around 1500 BC. to 1000 B.C. It is considered till and the later Vedic period which was 1000 BC. to 600 B.C. Stayed till the source of information about the Rigvedic period is the Rigveda, hence the early period is called the Rigvedic period. All human beings were equal in Rigvedic society. At that time there was no practice of untouchability and caste system. The society was based on the caste system, but the caste system was not based on birth but on deeds. There is no mention of Varna system or caste system in the first nine circles of Rigveda. The first mention of the varna system is found in the Purusha Sukta of the tenth division of the Rigveda, in which the origin of the four varnas has been told from the body parts of the great man. These were the four varnas – Brahmins, Kshatriyas, Vaishyas and Shudras. The words Vaishya and Shudra have also been used for the first time in the tenth division only. Even in relation to the condition of women, the Rigvedic period was called the golden period because then evil practices like purdah system and child marriage were not in vogue and there was a system of education for them. The prosperous social system of the Rigvedic period gradually changed over time. The varna system became based on birth in place of work and there was inferiority in the condition of shudras and women. Many bad practices came into vogue in relation to them. In the ancient Indian society, the first three varnas of the varna system were assigned the task of running and administering the society, while the fourth varna Shudra was given the task of serving these three varnas. This discriminatory system, which has been going on since ancient times, should have ended completely with modern times. But with the passage of time, as much progress was made by the above mentioned three varnas, there was no progress in the condition of Shudra varna. Although efforts were made from time to time by the governments of independent India, these efforts could not bring about the desired change in the condition of Dalits. In the Indian society, Shudra Varna was addressed by names like Dalit, Harijan, lower class, untouchable etc. and this class has always been neglected. Even after that, the life of the women of Shudra Varna remained cursed. Despite this, the women of Dalit/Shudra caste made their invaluable contribution in achieving India's independence despite facing opposition and discrimination everywhere. In the presented research paper, the contribution of Dalit community women in achieving independence has been analyzed so that the modern society should recognize those anonymous Dalit women who gave us the opportunity to live in independent India. Through this research paper, an attempt has been made to express gratitude towards the incomparable bravery and sacrifice of those unique women of Dalit caste.

 Abstract in Hindi Language:

भारतीय सामाजिक व्यवस्था वैदिक काल में बहुत समृद्ध रही हैं। वैदिक काल वह समय था जिसमें वेदों की रचना की गयी थी। वैदिक काल को दो भागों में बाँटा गया - ऋग्वैदिक काल जिसका समय लगभग 1500 ई.पू. से 1000 ई.पू. तक माना जाता है तथा उत्तर वैदिक काल जो 1000 ई.पू. से 600 ई.पू. तक रहा। ऋग्वैदिक काल की जानकारी का स्त्रोत ऋग्वेद है इसलिए प्रारंभिक काल को ऋग्वैदिक काल कहा जाता हैं। ऋग्वैदिक समाज में सभी मानव समान थे। उस समय अछूत और जाति प्रथा का प्रचलन नहीं था। समाज वर्ण व्यवस्था पर आधारित तो था पर वर्ण व्यवस्था जन्म पर नहीं कर्म पर आधारित थी। ऋग्वेद के प्रथम नौ मण्डलों में वर्ण व्यवस्था या जाति प्रथा का उल्लेख नहीं मिलता। वर्ण व्यवस्था का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद के दसवें मण्डल के पुरूष सुक्त में मिलता है जिसमें विराट पुरूष के शरीर के अंगों से चार वर्णों की उत्पत्ति बतायी गयी हैं। ये चार वर्ण थे - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैष्य और शुद्र। वैष्य और शुद्र शब्दों का भी सर्वप्रथम प्रयोग दसवें मण्डल में ही हुआ हैं। स्त्रियों की दषा के सम्बन्ध में भी ऋग्वैदिक काल स्वर्ण काल कहा गया क्योंकि तब पर्दा प्रथा और बाल विवाह जैसी कुप्रथाएँ प्रचलन में नहीं थी और उनके लिए षिक्षा की व्यवस्था थी। ऋग्वैदिक कालीन समृद्ध सामाजिक व्यवस्था कालान्तर में धीरे-धीरे परिवर्तित होती गयी। वर्ण व्यवस्था कर्म के स्थान पर जन्म पर आधारित हो गयी तथा शुद्रों और स्त्रियों की दषा में भी हीनता आती गयी। इनके सम्बन्ध में अनेक कुप्रथाएँ प्रचलन में आ गयी। प्राचीन भारतीय समाज में वर्ण व्यवस्था के प्रथम तीन वर्णों को समाज के संचालन व प्रषासन का कार्य सौंपा गया जबकि चैथे वर्ण शुद्र को इन तीन वर्णों की सेवा का काम दिया गया। प्राचीन समय से चली आ रही यह भेदभावपूर्ण व्यवस्था आधुनिक समय के साथ पूर्णतया समाप्त हो जानी चाहिए थी। परन्तु समय के साथ-साथ उक्त तीन वर्णों ने जितनी प्रगति की उतनी शुद्र वर्ण की दषा में उन्नति नहीं हुई। यद्यपि स्वतंत्र भारत की सरकारों द्वारा समय पर प्रयास किये गए तथापि ये प्रयास दलितों की स्थिति में आषानुरूप परिवर्तन नहीं कर पाए। भारतीय समाज में शुद्र वर्ण को दलित, हरिजन, निम्न वर्ग, अछूत आदि जैसे नामों से सम्बोधित किया जाता रहा और यह वर्ग सदैव उपेक्षित ही रहा हैं। उसके उपरांत भी शुद्र वर्ण की स्त्रियों का जीवन तो अभिषापमय ही रहा। बावजूद इसके दलित/शुद्र वर्ण की स्त्रियों ने सर्वत्र विरोध व भेदभाव का सामना करते हुए भी भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति में अपना अमूल्य योगदान दिया। प्रस्तुत शोध पत्र में स्वतंत्रता प्राप्ति में दलित समुदाय की स्त्रियों के योगदान का विष्लेषण किया गया है ताकि आधुनिक समाज उन गुमनाम दलित स्त्रियों को पहचानें जिन्होंने हमें स्वतंत्र भारत में जीने का सौभाग्य प्रदान किया। इस शोध पत्र के माध्यम से दलित वर्ण की उन विलक्षण प्रतिभाषाली स्त्रियों के अतुलनीय शौर्य व बलिदान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का प्रयास किया गया हैं।

Keywords: स्वतंत्रता प्राप्ति, दलित स्त्रियाँ, डॉ.  भीमराव अम्बेडकर, दलित आन्दोलन, जातिगत भेदभाव

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Published

14-03-2023

How to Cite

Tank, S. (2023). Sacrifice of Dalit women in the journey of independent India: स्वतंत्र भारत की निर्माण यात्रा में दलित स्त्रियों का बलिदान. RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary, 8(3), 302–307. https://doi.org/10.31305/rrijm.2023.v08.n03.038